लाइब्रेरी में जोड़ें

हरिहरपुरी की कुण्डलिया




हरिहरपुरी की कुण्डलिया


ममता वैश्विक हो सहज, मानवता से प्यार।

लोक तंत्र की नींव को,नहीं हिलाओ यार।।

नहीं हिलाओ यार,समतावाद सिखलाओ।

बोना मानव-बीज, लोक में प्रियता लाओ।।

कहें मिसिर कविराय, रहे नहिं मन में कटुता।

करो जीव से स्नेह, जगे दुनिया में ममता ।।


पावन मन-मस्तिष्क का,करना नित विस्तार।

शुद्ध हृदय के गेह का, होता स्वर्गिक द्वार।।

होता स्वर्गिक द्वार, हंस कलरव करता है।

सदा सरस्वति वास, सुखद वाचन चलता है।।

कहें मिसिर कविराय, मनाओ निशिदिन सावन।

कर सब का उद्धार, बने मन जग का पावन।।


सात्विक वह जो निष्कपट,अति पावन मन-गात।

 शुद्ध हृदय निर्मल धवल,बुद्धि विमल निष्णात।।

बुद्धि विमल निष्णात, परम सुंदर हितकारी।

सब के प्रति अनुराग, प्रेम अति मंगलकारी।।

कहें मिसिर कविराय, बने जो जग का नाविक।

वह सत्युग का मान, बढ़ाता बन कर सात्विक।।




   7
1 Comments

Renu

23-Jan-2023 04:59 PM

👍👍🌺

Reply